“मन के मोती” और उसके लेखक
के संदर्भ में दो शब्द
मुझे याद है कि जब भी बाऊजी का मूड होता था तो वह किसी भी कागज़ पर कविताएँ लिखना शुरू कर देते थे। बाद में वे उन्हें मुख्य लेखन पुस्तक में पुनः लिख देते थे। उनकी कविता लेखन तब शुरू हुई जब वह बहुत छोटे बच्चे थे। बचपन में कई बार मैं उनकी गोद में बैठकर उनसे उनकी कविताएँ सुनाने का अनुरोध करता था, कुछ कविताएँ बच्चों के लिए थी, और मेरे अनुरोध पर वे उन्हें सुनाया करते थे। बचपन में मुझे उनकी “बकरी”, “फूल”, “बिजली” “तोता” आदि कविताएँ बहुत पसंद थीं। ये कविताएँ अभी भी मेरे मस्तिष्क में हैं। उम्र के साथ-साथ ज्ञान प्राप्त करने के बाद मैं उनकी अन्य कविताओं को भी पढ़ता था और प्रत्येक कविता में छिपे गहरे अर्थपूर्ण खजाने को पढ़कर चकित रह जाता था। कविताएँ वस्तुतः मन की अभिव्यक्ति हैं, जिन्हें शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। “मन के मोती” बाउजी के बचपन से लेकर बाद की उम्र तक लिखी गई अनेक कविताओं का संग्रह है, ये सभी एक स्वनिर्मित भाव है जो उस काल में अभिव्यक्त हुए थे।
उस उम्र में जब मुझे नहीं पता था कि कविता क्या है…? कविताएँ क्यों लिखी जाती हैं…? छंद, मात्रा, लय, अलंकार और सुर क्या हैं? मेरे नन्हे मन में इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था। मैं प्रायः देखता था कि साहित्य में रुचि रखने वाले बहुत से विद्वान बाऊजी के पास आया करते थे। वे उनकी लिखी कविताओं का पाठ पूरे मन और लगन से सुनते थे। कारण था कि मेरे पिता छंद के अनुसार सुर में कविता गाने में सिद्धहस्त थे। जब मैं एक छोटा बच्चा था तब अपने पिता के पास बैठना बहुत पसंद करता था। हालाँकि उन दिनों मेरे लिए विषय को समझना मुश्किल था, लेकिन मैं उन विद्वान और बुद्धिजीवी लोगों के बीच बैठा करता था, उनकी कविताओं को पूरे मन से मूक श्रोता बनकर, बिना किसी प्रतिक्रिया के सुनता था। मुझे आज भी याद है कि जब कभी बाऊजी के गुरुजी श्री अतोम्बापू शर्म्मा या पद्मश्री कालाचांद शास्त्रीजी आते थे तो वे एक दूसरे के साथ शुद्ध संस्कृत में संवाद करते थे। पद्मश्री कालाचांद शास्त्रीजी कविता के छंद और मात्रा पर विशेष ध्यान देते थे। वे किसी विशेष शब्द या पंक्ति विषय में लंबे समय तक चर्चा किया करते थे। मणिपुर में साहित्य और शिक्षा की दुनिया में विशेष स्थान रखने वाले कई विद्वान उनके साथ संस्कृत और हिंदी साहित्य पर बहुत स्वस्थ और उच्च स्तर की चर्चा करते थे। उनमें से कुछ नाम जो मुझे याद हैं, वे हैं श्री सी.एच. कालाचांद शास्त्री, श्री अतोम्बापू शर्म्मा, श्री चोंगथाम दरबीरचंद्र सिंह, श्री ए. परीक्षित शर्म्मा, श्री एल. श्यामकिशोर सिंह, श्री पी.एच. देबकिशोर सिंह, श्री आर.के. थंबालसना सिंह, श्री एस. नबकुमार सिंह, श्री दाऊजी शर्म्मा, श्री ए. अमुबी शर्म्मा, श्री सी.एच. इबोयैमा सिंह, श्री एन. नीलकमल सिंह, श्री पी.एच. लाला शर्म्मा, श्री. अरीबम नंदमोहन शर्म्मा, श्री फुराइलातपम बिहारी शर्म्मा, श्री एच. बिजॉय सिंह, श्री नीलबीर सिंह, श्री नंदलालजी, श्री टी.एच. इबुगोंहल सिंह, श्री तंत्रधार शर्म्मा, श्री राजमणि शर्म्मा, श्री जै.एम. रैना, श्री ए. नीलमणि सिंह, श्री एन. किरानी सिंह, श्री मनीराम शर्म्मा ‘शास्त्री’, प्रो. सत्यज्योति चक्रवर्ती, श्रीमती एम. के. बिनोदनी देवी, श्री ललिता माधब शर्म्मा, प्रो. इबोतोम्बी सिंह, प्रो. नीलकांत सिंह, श्री योगेंद्रजीत सिंह, श्री तोम्पोक सिंह, आदि। कभी वे हमारे घर के पीछे वाले बगीचे में, कभी हमारे घर के सामने वाले आंगन में और कभी परिवार के मंदिर के हॉल में बैठ जाते थे और घंटों चर्चा चलती रहती थी। कभी-कभी बहुत ही मजेदार या हास्यस्पद हो जाता था। उनके एक मित्र थे, जिनका नाम श्री नरहरि था, जो एक गैरेज के मालिक थे। मेरे पिताजी के पास एक अमेरिकन, लेफ़्ट हैण्ड ड्राईव विलीज की जीप थी, जब भी वे उनके गैरेज में मरम्मत के लिए जाते थे, तो वे जीप की मरम्मत को भूलकर साहित्य पर चर्चा शुरू कर देते थे। और घण्टों वह चर्चा चलती रहती थी। शायद यही कारण था कि मुझे साहित्य और भाषा से प्यार हो गया और यह विषय मुझमें गहराई तक समाया हुआ है। प्रभाव इतना मजबूत था कि मैंने अंततः मणिपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
आज मैं जो कुछ भी हूं वह जिजिविषा मैंने बाऊजी से ही विरासत में पायी है, आज भी स्वप्न में कई बार बाऊजी की एक थपकी – एक गोद, मैं प्रायः महसूस करता हूँ। उनमें वे सारी योग्यताएं और गुण थे जो एक सर्वश्रेष्ठ और महान पिता में होनी चाहिये। हमें देने के लिए उनके पास हमेशा ज्ञान का अमूल्य भंडार था, पिता के स्थान पर वे मेरे लिये एक आदर्श पिता थे, पर वे मेरे लिये एक सबसे विशिष्ट मार्ग दर्शक और सच्चे मित्र थे।
बाऊजी हमेशा कहा करते थे “अनंत पारं किल् शब्द शास्त्रम्” आज – इस उक्ति का अर्थ स्पष्ट हुआ, अगर मैं उनकी लिखी कविताओं के बारे में कुछ कहूं तो वह हाथ से समुद्र का पानी निकालने जैसा होगा। साहित्य हमेशा समाज का दर्पण होता है। “मन के मोती” कविताओं का संग्रह भारतीय स्वतंत्रता से पहले से लिखा गया था, इसलिए कई कविताओं में उस समय की तस्वीर देखी जा सकती है। इसके अलावा कुछ कविताएँ सामाजिक परिस्थितियों को दर्शाती हैं। कुछ ज्वलंत मुद्दों पर हैं। कुछ स्कूल की किताबों के लिए हैं और कुछ कविताएँ प्यार और स्नेह व्यक्त करती हैं। प्रकृति की सुंदरता पर कुछ कविताएँ हैं। “मन के मोती” विभिन्न प्रकार की कविताओं का अद्भुत संग्रह है। मैं सुधि पाठकों से बाऊजी की लिखी कविताओं के पठन का आग्रह करता हूँ। मुझे विश्वास है कि इन कविताओं में पाठक डुब जायेंगे।
-शुभमस्तु-
डॉ. विनोद कुमार शर्म्मा
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