कंबोडिया-वियतनाम

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कंबोडिया-वियतनाम कभी वृहत्तर भारत का हिस्सा हुआ करते थे या यूँ कहें कि भारतीय राजाओं के अधीन दूर-दराज के प्रदेश हुआ करते थे। यहाँ कभी हिन्दू धर्म हुआ करता था, पौराणिक हिन्दू कथा-कहानियाँ प्रचलित थी तथा कई देवी-देवताओं के मंदिर यहाँ बने थे। आज हिन्दू धर्म तो वहाँ रहा नहीं मगर मंदिरों के भग्नावशेष तथा यत्र-तत्र भारतीय नाम देखने-सुनने को मिलते हैं। कभी पिछड़ा समझे जाने वाले ये देश आज आधुनिक बन गए हैं तथा उन्नति के राह पर अग्रसर हैं। हैरत होती है क्या हिन्दू धर्म के अंधविश्वासों तथा पुरानी मान्यताओं ने इन्हें जकड़ रखा था! आज वहाँ बौद्ध धर्म का बोलबाला है तथा यदा-कदा ईसाई तथा इस्लाम धर्म। कहीं ऐसा तो नहीं कि हिन्दू धर्म में ही कुछ ऐसी बातें हैं जो उन्हें संसार की मुख्य धारा से नहीं जुड़ने देती तथा उन्नति में बाधक है!
मुझे कंबोडिया-वियतनाम एक सामाजिक प्रयोगशाला जैसा लगा जहां हम अपने आप को एक सही परिप्रेक्ष्य में देखें। खैर पर्यटन के हिसाब से तो यहाँ का इतिहास-भूगोल आकर्षित करता ही है, यहाँ के लोगों की जीवनधारा से कुछ जुड़कर लोगों के सोच-विचार मुझे ज्यादा आकर्षित करते हैं। संघर्ष तथा बदलाव की एक लंबी कहानी है ये प्रदेश। यहाँ के लोगों ने धर्म के नाम पर कोई खूनी लड़ाई नहीं लड़ी मगर गरीबी से खूब लड़े और यही लड़ाइयाँ ऐतिहासिक मार्गदर्शक बनी…
श्री मोहन कुमार सरकार द्वारा लिखी यात्रा वृत्तांत ‘वामन के चरण’ से भी मुझे बहुत कुछ जानकारी मिली जिसका लाभ मैंने अपने भ्रमण और अपने लेखन के वक्त किया, श्री बिनय कुमार शुक्ल ने अपना कीमती वक्त निकाल इस पुस्तक की भूमिका लिखी एवं श्री नन्दलाल साव ने इस पुस्तक को सजाने-संवारने एवं प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया। सबका आभार प्रकट करती हूँ।
बहुत दिनों से इच्छा थी कंबोडिया-वियतनाम को देखा जाए और मौका मिला। मैं वहाँ पहुँची। बहुत कुछ देखा, ढेरों रोचक बातें जानने-सुनने को मिली। और अब वक्त आ गया है कि मैं अपने अनुभव आप सबसे शेयर करूँ। भरसक बहुत कुछ समेटा है। कैसा लगा!!

माला वर्मा

Weight 250 g
Dimensions 24 × 14 × 2.5 cm

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Description

आदरणीया माला वर्मा जी का नवीनतम यात्रा संस्मरण आपके हाथों में है। कंबोडिया और वियतनाम दोनों दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का एक हिस्सा हैं। इन दोनों के बीच में लगभग 250 किलोमीटर की दूरी है पर दोनों देशों की भौगोलिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में काफी अंतर है। एक तरफ जहां कंबोडिया डेल्टा और मैदानी क्षेत्रों से भरा है वहीं दूसरी ओर वियतनाम सुंदर समुद्री तटों के लिए प्रसिद्ध है।
इसके अतिरिक्त एक तरफ जहां कंबोडिया में अंगकोर वाट जैसे ऐतिहासिक धरोहर हैं वहीं वियतनाम युद्ध से अधिक प्रभावित रहा है। इसलिए वहां युद्ध से संबंधित संग्रहालय काफ़ी संख्या में हैं जो अपने आप में दर्शनीय स्थल हैं। इसके अतिरिक्त वियतनाम एक ऐसा देश है जो सदा ही युद्ध से पीड़ित रहा है। ऐसे देश में यात्रा की बात सोचना भी कई लोगों के मन में सिहरन सा भर देता है। स्वाभाविक भी है कि कोई भी विदेशी पर्यटक ऐसे देश में कदम रखने की नहीं सोचेगा जो युद्ध से पीड़ित हो।
लेखिका का ऐसे देश में जाना यह प्रमाणित करता है कि कई बार सुनी सुनाई बातें गलत भी होती हैं और यही वियतनाम के बारे में भी है। यह बात वहाँ पहुँचकर ही समझ में आती है। प्रकृति के विविध छटाओं को अपने आप में समेटे हुए है यह देश, जो यहाँ आकर देखने को मिलता है। ये सारी बातें इस पुस्तक के पन्नों में समाहित है।
कुल मिलाकर एक शांत तो दूसरा अशांत इस विरोधाभासी विवरण वाले दो स्थानों को एक सूत्र में पिरोते हुए उनका भ्रमण और वहाँ प्राप्त अनुभवों को कलमबद्ध कर साझा करना
निःसंदेह अथक और अकल्पनीय प्रयास है जिसे लेखिका ने समयबद्ध और योजनाबद्ध तरीके से इस पुस्तक में जिस प्रकार से उकेरा है उसकी प्रशंसा में शब्द कम पड़ जाएंगे। हर बारीकी का उसी सूक्ष्मता से वर्णन अप्रतिम है।
विभिन्न भाषाओं में ऐसे स्थलों की जानकारी देने वाली कई पुस्तकें मिल सकती हैं पर यदि हिंदी भाषा में कोई सटीक पुस्तक इन स्थलों की जानकारी दे सकती है तो वह माला वर्मा जी की यह एकमात्र पुस्तक है। इस पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत यह है की इसमें इन दोनों स्थानों पर पहुंचने से लेकर उनके पर्यटन स्थल, आहार-विहार और जीवन शैली का सटीक विवरण मिलता है। यात्रा विवरण या यात्रा के लिए मार्गदर्शिका के रूप में यदि आप हिंदी भाषा में कोई पुस्तक ढूंढ रहे हैं तो इंटरनेट पर भी आपको माला वर्मा जी की पुस्तकें अधिकाधिक मिलेंगी। अब तक 45 से भी अधिक देशों की यात्रा और उन देशों के यात्रा संस्मरण और यात्रा के लिए मार्गदर्शिका के रूप में इनकी कई पुस्तकें अमेजन जैसे मंचों पर भी उपलब्ध है।
इस पुस्तक को पढ़ने पर ऐसा लगा जैसे इसके शब्दों के माध्यम से वास्तव में इन दोनों स्थानों की गलियों में पहुँच गया हूँ। इन देशों में घूमने जाने के इच्छुक पर्यटकों के लिये यह पुस्तक बहुमूल्य धरोहर का काम करेगी। इस बहुमूल्य सृजन के लिये ढेरों शुभकामनाएँ।

सादर,

 

बिनय कुमार शुक्ल
संपादक भाखा (अवधी त्रैमासिक पत्रिका)
इंदु संचेतना (अंतर्राष्ट्रीय हिंदी साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका)
प्रधान संपादक संवाद मंच (अनुवाद की लघु पत्रिका)
भाषा शिक्षण अनुवाद संस्थान (संस्थापक एवं संचालक)
बी.बी.टी. रोड, हाजीनगर,उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल
पिन-743135, मेल – binayshukla02@gmail.com
दूरसंचार : 7359426089

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