इंग्लैंड-आयरलैंड

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इंग्लैंड-आयरलैंड एक जीवंत यात्रा संस्मरण
यह शाश्वत है कि यात्रायें जीवन का अनूठा अनुभव प्रदान करती हैं। यह भी सच है कि उन यात्राओं का अनुभव अलहदा होता है, जिन यात्राओं पर निकलने से पहले आप पूरी तरह से खाली होते हैं। यात्रा संस्मरण या वृतांत लिखना बस आभास और अहसास को दर्शाती है। हम में से कोई विरला ही ऐसा होगा कि जिसे घूमना पसंद नहीं होगा। यह अलग बात है कि घूमने का तरीका, पसंद और वज़ह अलग-अलग हो। लेकिन इसके बावजूद हम सब अपने जीवन में कुछ पल ऐसे चाहते हैं कि जीवन की आपाधापी से दूर वहाँ जाएँ, जहाँ हम बंधन से मुक्त हों।
माला वर्मा अपनी यात्रा संस्मरणों को सिनेमा एवं संगीत के उल्लेख किये बिना प्रस्तुत ही नहीं करती हैं। इस संस्मरण में भी हिन्दी सिनेमा के जिक्र के साथ विश्व के सिनेमाई यात्रा का भी लाभ पाठक उठा सकेंगे। विशेष बात यह है कि ‘इंग्लैंड-आयरलैंड’ में वहाँ के पर्यटन की तुलना भारतीय पर्यटन से करती चलती हैं। इन्हीं सब बातों को दर्शाती है श्रीमती माला वर्मा की नई यात्रा संस्मरण ‘इंग्लैंड-आयरलैंड’ जो यात्रा वृतांत है। जिसमें उन्होंने विकसित देशों के विकसित होने की बात भी बताती हैं। सर्वविदित है कि इंग्लैंड ने सोलहवीं-सत्रहवीं सदी से ही पूरी दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर अपना वर्चस्व बना रखा था। इसी बातों को ख्याल में रख कर वे इस यात्रा संस्मरण को एक विश्व यात्री के रूप में पाठकों के सामने रखती हैं। वह इन देशों के पर्यटन स्थलों के रखरखाव, साफ-सफाई देख कर काफ़ी प्रभावित भी होती हैं।
‘इंग्लैंड-आयरलैंड’ में माला वर्मा ने यात्रा के दौरान होने वाले रोमांच के साथ-साथ दिक्कतों को जहाँ बताया है, वहीं यात्रा के दौरान कई रोचक बातों को भी उजागर किया है। पूरी यात्रा में वह अपने सहयोगियों को नहीं भूलतीं हैं जो पूरी पुस्तक को रोचकता प्रदान करती है। यात्रा वृतांतों पर बाज़ार में ढेरों किताबें हैं, लेकिन माला वर्मा की ‘इंग्लैंड-आयरलैंड’ नामक यह किताब लीक से जरा हटकर है। जिसे पढ़ते वक्त समय का आभास ही नहीं होता।
प्रदीप श्रीवास्तव
संपादक, प्रणाम पर्यटन
लखनऊ, (उत्तर प्रदेश)
मो. – 8707211135

Weight 180 g
Dimensions 24 × 14 × 2.5 cm

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Description
यानी ग्रेट ब्रिटेन। यही नाम इस क्षेत्र के लोगों ने अपने देश को दिया। आज यहां एक सर्वविदित छोटी सी ऐतिहासिक बात की चर्चा करें। सभ्यता के प्रारम्भिक दौर में जब मनुष्य एक साथ मिलकर रहना सीख रहा था तब हर क्षेत्र में एक मुखिया बना जो उस कबीले का सबसे ताकतवर आदमी होता था। उन दिनों ऐसे क्षेत्रों को गाँव या कबीला कहा गया। ये गाँव बड़े होते गए क्योंकि मुखिया मजबूत होता गया और आसपास के क्षेत्रों को जीत कर वो अपनी सीमा बढ़ाता गया। अब इन क्षेत्रों का नामकरण भी हुआ होगा। इन्हें रियासत या जागीर और यहां के मुखिया को जागीरदार या राजा कहा जाने लगा। प्रारंभिक दौर में आज के देश सैंकड़ों राज्यों से मिलकर बनते थे। अपने भारत में भी सैंकड़ों रियासतें, जागीरदार या राजा थे।
आज के इंग्लैंड में भी अनगिनत रियासतें थी जो आपस में लड़ते-झगड़ते, टूटते-बनते, अधिकार करते या अधिकृत होते धीरे-धीरे चार प्रमुख राज्यों में बदल गए- इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स तथा आयरलैंड। इनमें आयरलैंड एक अलग द्वीप पर और बाकी सभी एक ही भूखंड पर हैं।
इन चारों क्षेत्रों की भाषाएँ, रहन-सहन तथा धार्मिक मान्यताएं अलग थी। ईसाई धर्म के प्रचार के बाद इन सबों की धार्मिक मान्यताएं एक हो गई यानी ये सब पुरानी विचारधाराओं को त्याग एक मतावलंबी हो गये। ईसाई धर्म ने इन सब को एकजुट बनाये रखा।
फिर भी छिटपुट लड़ाईयां होती रहीं, कमजोर हारते रहे और मजबूत आगे निकलते गये। इनमें लंदन में स्थित इंग्लैंड का राजा सबसे ताकतवर निकला और उसने स्कॉटलैंड, वेल्स और आयरलैंड पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी। ये अधिकृत क्षेत्र इंग्लैंड के चंगुल से निकलने के लिए ज़ोर-आजमाइश करते रहें पर तभी बर्बर प्रजातियों ने इन क्षेत्रों पर हमला शुरू किया। वाइकिंग, वेंडाल (Vandal), गोथ आदि प्रजातियां प्रमुख थी। इन प्रजातियों के हमले से परेशान ब्रिटिश समूह के ये चारों राज्य आपस में मिलजुल कर मुक़ाबला किये। इन मुकाबलों में इन प्रजातियों की हार होती रही मगर ये तो लुटेरे किस्म के थे। लूटपाट किया और भाग निकले, मगर कुछ बसते भी गए।
बाद में सभी लोगों से मिलकर एक संस्कृति बनी जिसने इस क्षेत्र को काफी मजबूती दी। अब ग्रेट ब्रिटेन तरक्की कर रहा मगर बाकी के ये तीनों राज्य – स्कॉटलैंड, वेल्स, आयरलैंड चंगुल मुक्त होने का प्रयास करते रहें। खैर, बाद में ये मुक्त हुए मगर इंग्लैंड का हिस्सा बन के रह गए सिर्फ आयरलैंड को छोड़कर। आयरलैंड भी मुक्त हुआ लेकिन एक अलग देश बनकर।
इस तरह ग्रेट ब्रिटेन में उथल-पुथल, उतार-चढ़ाव होते रहें, सभ्यता विकसित होती रही और गाँव बड़े-बड़े शहर बन गए। ये शहर मानचित्र पर, खबरों में आने लगे और हम पर्यटक इन शहरों की सैर करने लगे। हम इतिहास के विद्यार्थी तो बन गए मगर भूगोल को भूलने लगे। सभ्यता के इस विकास की प्रक्रिया में गाँव-देहात या वन संपदा पीछे रह गई जहां प्रकृति अभी भी निवास करती है। देर से ही सही मगर अब इन स्थानों की तरफ लोगों का ध्यान गया और ‘लेक डिस्ट्रिक्ट’ के नाम से इन स्थानों को पहचाना गया। आज शहरीकरण के आपाधापी से दूर यह स्थान मन को इतनी सुख-शांति देते हैं जो बड़े-बड़े चर्च, कैसल, किले नहीं दे सकते हैं। तो हमने भी इंग्लैंड, आयरलैंड के प्राकृतिक छटा से भरे इन क्षेत्रों का आनंद लिया मगर बीच में पड़ने वाले शहर जो इतिहास के साक्षी रहें, उन्हें छोड़ा भी नहीं।
‘लेक डिस्ट्रिक्ट’ जो इस टूर प्रोग्राम का नाम था- हमने ढेरों झीलें, खेत-खलिहान, पालतू मवेशी और प्राकृतिक सुंदरता देखी। इस खूबसूरती को लिखकर समझाना आसान कार्य नहीं फिर भी मैंने प्रयास किया है। सीमित समय में हर स्थान का बारीकी से अवलोकन मुश्किल था फिर भी कुछ न कुछ रोचक जानकारियाँ आपको मिलती रहेंगी। अपने इस यात्रा वृतांत में भरसक इतिहास-भूगोल को मैंने रखा है। उम्मीद करती हूँ आपको ये किताब पसंद आयेगी, आप लाभान्वित होंगे और इन देशों को घूमने-देखने की इच्छा प्रकट होगी।
इस पुस्तक की पाण्डुलिपि पढ़ कर अपने-अपने क्षेत्र के कई सम्मानित लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया रखी। अपनी व्यस्त दिनचर्या में मेरे लिए बहुमूल्य समय निकाला इसके लिए आभारी हूँ। साथ ही अंजनी प्रकाशन के सर्वेसर्वा श्री नन्दलाल साव जी का आभार जिन्होंने इस यात्रा संस्मरण में बड़ी मेहनत से इस QR कोड तकनीक को दिया है। इससे अहिंदी भाषी लोग लाभान्वित होंगे। आप पढ़ने के साथ-साथ इसे आराम से सुन भी सकते हैं।
अशेष धन्यवाद…
माला वर्मा
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