ऋण चुकाए बिना मुक्ति नहीं
यह माया का जगत है। ईश्वरीय व्यवस्था में जीवात्मा मोह-माया में उलझी रहती है, परमात्मा की लीला चलती रहती है और हर प्राणी जय-पराजय के चक्र में सुखी-दुखी होता रहता है। जब तक हम जीतते रहते हैं, विजेता-भाव से सुखी और आनन्द में रहते हैं। जब हारते हैं तो दुखी-पीड़ित होते हैं और हमारा रोना-धोना शुरू हो जाता है। ईश्वर और अपने भाग्य-दुर्भाग्य को कोसना शुरू कर देते हैं।
हमें तनिक ठहरना चाहिए और इसके पीछे के रहस्यों, कारणों को समझने का प्रयास करना चाहिए। भारतीय दर्शन में कार्य-कारण के सिद्धान्त की चर्चा है। कोई कार्य हो रहा है तो उसके पीछे कोई कारण है, कोई उद्देश्य है। इसे हम ईश्वरीय व्यवस्था के रूप में समझ सकते हैं। कर्म का सिद्धान्त यही है, जैसा हम कर्म करेंगे, हमें उसका फल भोगना पड़ेगा। अच्छा कर्म तो फल भी अच्छा, बुरा कर्म तो प्रतिफल बुरा। हमारे सनातन ग्रंथों में इस रहस्य को विस्तार से प्रतिपादित किया गया है और ऋण, ऋणानुबंध, प्रारब्ध आदि कर्मफलों की चर्चा हुई है।
अपने अनुभवों के आधार पर मैंने इसे “ऋण के सिद्धान्त” के रूप में समझने-समझाने का प्रयास किया है। ना तो मैंने कोई नया सिद्धान्त प्रतिपादित किया है और ना ही कोई भिन्न व्याख्या की है। इस भावना के पीछे आत्माओं के सम्बन्ध, आपसी लेन-देन और ऋणों में बँधने-बाँधने का ईश्वरीय विधान है। इसकी कुछ संकल्पनाएं हैं – हर आत्मा जीवधारी बनकर आपस में व्यवहार करती है और एक-दूसरे को ऋणी बनाती है, ऋण चुकाना ही पड़ता है जिसे हम सामान्यतया भोगना कहते हैं, ऋण चुकाने की अवधि ईश्वर तय करता है, कभी तुरन्त लौटाना पड़ता है, कभी जन्म-जन्मान्तरों के बाद, ऋण चुकाते समय व्यक्ति सक्षम,समर्थ होता है, जितना और जो ऋण है, वही ब्याज के साथ चुकाना है, जिस आत्मा का ऋण है, वही रिश्तों-नातों में आकर अपना ऋण वसूल करती है और सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है, ऋण चुकाए बिना मुक्ति नहीं मिलती। इस जन्म में किसी तरह भाग खड़े हुए तो पुनः अगले किसी जन्म में वही साहूकार खड़ा हो जायेगा। खूब गहराई से चिन्तन करने पर समझ में आने लगता है, ऋण चुकाने का समय चल रहा है। यदि सहर्ष वापस नहीं कर रहे हैं तो आपसे छिन लिया जाता है। उचित यही है, किसी का ऋणी मत बनो, ऋण है तो चुकाने की भावना रखो और उदारता पूर्वक जीवन जीयो। हमेशा याद रखो-ऋण चुकाए बिना मुक्ति नहीं मिलने वाली। यह भी याद रखो-हमारे सारे सम्बन्ध ऋण के हैं और हम सभी अपना-अपना ऋण चुकाने के लिए एक-दूसरे से जुड़े हैं। अधिकार के भाव को छोड़ दो और ऋण चुकाने के भाव में रहो। तभी हम सुखी-शान्त रहेंगे और ईश्वर की कृपा बनी रहेगी।
– विजय कुमार तिवारी
आत्माओं का ऋण, ईश्वरीय व्यवस्था और हमारी ऋण-मुक्ति
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आत्मायें आपके पास आना चाहती हैं और आपको सुखी देखना चाहती हैं। दुःख के समय अक्सर लोगों को अनुभव होता है, जैसे कोई आया और मुझे बचा दिया या सहायता मिल गयी। अवश्य किसी देवात्मा ने अनुग्रह किया होगा। जब हम सुखानुभूति करते हैं तब बहुत सी पवित्र आत्मायें हमारे आसपास होती हैं।
2017 की फरवरी में, किसी सुबह, कैम्पस में दूब घास पर कुर्सी लगाकर पुस्तक पढ़ने लगा और शीघ्र ही पुस्तक की विषय-वस्तु में डूब गया। ऐसा लगा, अचानक कुछ लोग आ खड़े हुए हैं। मुख्य गेट पर आवाज हुई नहीं, कौन हैं ये लोग? पुस्तक से ध्यान हटाकर सिर उठाया,वहाँ कोई नहीं था। आश्चर्य हुआ। इधर-उधर,चारों तरफ़ देखा। किसी के आने-जाने का कोई संकेत नहीं मिला।
फिर ध्यान पुस्तक में लगाया और पढ़ने लगा। पुनः वैसा ही अनुभव हुआ। इस बार उन सब ने छिपाया नहीं। हास्य जैसा महसूस हुआ जैसे वे कह रहे थे,हम इन पेड़ों की आत्मायें हैं। विचित्र आध्यात्मिक अनुभूति हुई,मैं सिहर उठा,रोंगटे खड़े हो गये और बहुत देर तक उन सब की उपस्थिति महसूस करता रहा। अच्छा लगा कि उन्हें मेरा सानिध्य पसन्द है।
मार्च में किसी दिन वैसे ही बाहर बैठा था। आम में मंजरी के साथ छोटे-छोटे फल दिख रहे थे।
मेरी दृष्टि आम के एक छोटे से दाने पर टिक गयी। ध्यान में आया कि यही दाना कुछ दिनों में बड़ा फल बन जायेगा। अचानक भीतर प्रश्न उभरा कि जीवन-रस इस दाने तक कैसे पहुँचता होगा? तरल चीजें ऊपर से नीचे गिरती हैं, इसे पेड़ के जड़ से ग्रहण करना होता है अर्थात् नीचे जड़ से रस ऊपर पत्तों और फलों तक पहुँचता है। थोड़ी हँसी आई कि भगवान ने हर पेड़ में पम्प लगा दिया है।
अचानक चमत्कार जैसा घटित हुआ। लगा,सामने वाले पेड़ के सभी पत्ते ओझल हो गये हैं। केवल तना,डालियाँ और छोटे-छोटे दाने दिख रहे हैं। तना और डालियाँ मटमैले काले रंग की हैं। फिर उन तनों और डालियों के भीतर हरे रंग की रेखायें उभरीं और उनमें हरा रंग का तरल पदार्थ नीचे से ऊपर की ओर तीव्रता से प्रवाहित होने लगा और हर दाने तक पहुँचने लगा। अपूर्व अनुभूति हुई और मैं परमात्मा के प्रति नतमस्तक हुआ। ईश्वर ने कृपा करके मुझे अपने रहस्य की अनुभूति करवायी।
– विजय कुमार तिवारी
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- Author: VIJAY KUMAR TIWARI
- Edition: First
- Language: Hindi
- Publisher: Anjani Prakashan
Weight | 150 g |
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Dimensions | 23 × 14 × 1.5 cm |
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