यूरोप को हम जहां से, जैसे भी देखें ये हमेशा हमें हैरत में डालता है। प्रकृति ने उदारमन से अपनी संपदाएँ यहां बिखेरी हैं और यहां कुछ ऐसे मनुष्य और विचार पैदा किए कि यहां का इतिहास हमें हैरत में डालता है। अभी हम पूर्वी यूरोपीय देशों (ईस्टर्न यूरोप) की ही बात करेंगे। अपने को ज्यादा सभ्य और समृद्ध समझने वाले रोमन तथा अरबी लोग पूर्वी यूरोप के देशों को कभी असभ्य और बर्बर समझते थे इसलिये कि इनका कोई संगठित धर्म नहीं था और न ही इनके पास कोई इतनी शिक्षा-दीक्षा थी। मगर बाद में इन देशों ने अपने भूल-भुलैयों से निकल कर सभ्यता और आधुनिकता की वो राह पकड़ी की अपने को सम्पूर्ण मानने वाले लोगों को इन्होंने आईना ही दिखा दिया। ऐसे देशों की यात्रा किसी के लिये भी एक अनूठा अनुभव हो सकता है।
आज अगर हम जर्मनी, पोलैंड, ऑस्ट्रिया, इटली, चेकोस्लोवाकिया सदृश्य देशों की बात करते हैं तो हम सीधे प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रवेश कर जाते हैं और जब विश्वयुद्ध की बात करते हैं तो पूरा विश्व इनके लपेटे में आ जाता है यानी यहां के लोगों ने विश्व का एक नया अभूतपूर्व इतिहास ही रच दिया था। इस क्षेत्र का चप्पा-चप्पा युद्ध से प्रभावित हुआ था। इन जगहों पर घूमते हुए बरबस ये सवाल मन में कौंधने लगते थे- ये कितने साहसी और शरीर से कठोर लोग थे। कितनी यंत्रणाएं और उथल-पुथल यहां के लोगों ने अपने जीवन में देखा और भुगता था।
आज इन देशों में जाएँ तो इन अदम्य साहसी लोगों के चेहरे पर कहीं भी हारने के कोई चिन्ह नजर नहीं आते हैं। अस्त्र-शस्त्र की बात हो, धर्म-कर्म की बात हो या ज्ञान-विज्ञान की बातें हो किसी मामले में ये विश्व के किसी क्षेत्र से कम नहीं है। यूरोप के धार्मिक या सामाजिक पुनर्जागरण (रेनेसां) की अधिकांश बातें यहीं शुरू हुई। ईसाई धर्म जो आज पूरे विश्व में फैला हुआ है कभी कुरीतियों से भरा था और उसके ‘सर्विसिंग’ ईस्टर्न यूरोप के कई देशों में ही हुई थी।
यूरोप के इस पूर्वी देशों की यात्रा के ख्याल ने मन को कुछ ऐसा उद्वेलित किया कि मैं इन देशों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने लगी। यहां बता दूँ वैसे तो ‘ईस्टर्न यूरोप’ में बहुत सारे देश आते हैं लेकिन हमने इस ट्रिप में आठ देश देखें। जिनके नाम है – पोलैंड, हंगरी, चेक रिपब्लिक, स्लोवाक, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, स्लोवेनिया और क्रोयेशिया।
इस पुस्तक की भूमिका श्री विजय कुमार तिवारी जी ने लिखी है। अपनी व्यस्त दिनचर्या में मेरे लिए इतना बहुमूल्य वक्त निकाला इसके लिए मैं उनकी सदा आभारी रहूँगी। उम्मीद करती हूँ आपको मेरी ये यात्रा वृतांत पसंद आएगी। इस यात्रा में सभी लोगों का आभार प्रकट करती हूँ जिनकी वजह से ये यात्रा बेहद रोचक रही।
इस पुस्तक के अध्यायों को सुनने के लिए ‘बारकोड’ को अपने मोबाइल से स्कैन करें। यह बारकोड हर अध्याय के पृष्ठ पर संलग्नित है। मेरी किताबों के लिए इस नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। ये बारकोड सिस्टम ऐसे लोगों के लिए है जो हिन्दी अच्छे से बोल-समझ लेते हैं लेकिन हिन्दी लिपि पढ़ने में दिक्कत आती है या फिर हिन्दी सिरे से नहीं पढ़ पाते। जैसे मैं स्वयं उदाहरण दूँ। मैं बंगला आसानी से बोल-समझ लेती हूँ लेकिन पढ़ नहीं पाती। चूंकि मेरी हर यात्रा कोलकाता (बंगाल) से शुरू होती है – स्वाभाविक है सभी सहयात्री बंगाली होते हैं। उनका ख्याल रखते हुए (इसे अन्य भाषा-भाषी लोग भी लाभान्वित हो सकते हैं) इस बारकोड सिस्टम को मेरे यात्रा वृतांत में जोड़ा गया है। पढ़ने का झंझट नहीं। आप हिन्दी नहीं पढ़ सकते लेकिन सुन समझ सकते हैं। बस सुनते रहिए और यात्रा का आनंद लीजिए।
ये बारकोड सिस्टम कैसा लगा! कृपया अपने बहुमूल्य राय से अवगत कराये ताकी भविष्य में और सुधार किया जा सके। अंजनी प्रकाशन के कर्ता-धर्ता श्री नंदलाल साव जी का हार्दिक आभार जिन्होंने इस यात्रा वृतांत में बड़ी मेहनत से इस बारकोड सिस्टम को एंट्री दी है। आप सबके सलाह-मशवरा का इंतजार है…
सम्प्रीति घोष मेरे कैंपस में रहती है और बहुत सुंदर चित्र बनाती है। आभार सम्प्रीति।
माला वर्मा
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