लम्बे-चौड़े खुले घास के मैदानों में छोटी-बड़ी घासों के बीच विचरते जेब्रा, जिराफ, हाथी तथा किसी छायादार छोटे वृक्ष के नीचे सिंहों की हाँफती तस्वीर कहीं दिख जाये तो अमूमन ये अफ्रीका के केन्या का ही दृश्य हो सकता है और यह सच भी है। जब मैंने अफ्रीका के जंगल, जानवर और आदिवासियों का इतिहास व पृथ्वी की धरातल पर हुए परिवर्तन आदि को पढ़ा तो सर्वप्रथम केन्या ही नजर आया। जाहिर है जिज्ञासा बढ़ती गई।
जिस देश को अब तक ‘लैंड ऑफ गेम्स’ के नाम से पढ़ते आई थी वो तो उसका डार्क साइड था। यूरोप के राजे रजवाड़ों ने जंगल एडवेंचर के नाम पर शिकार के लिए जिस क्षेत्र को चुना था वह केन्या तथा उसके पास ही स्थित तंजानिया था। चीतों की खाल, भैंसों तथा बारहसिंगों के सींग सहित खोपड़ियाँ तथा हाथी दाँत अभी भी यूरोप के छोटे-बड़े महलों में दिखते हैं। कभी बड़ी बहादुरी से इन निर्दोष जीवों की लाश पर अपने पैर रखकर और हाथ में राइफल लिए फोटोज खिंचवायीं जाती थी तथा जन-साधारण के बीच इसका प्रदर्शन भी होता था – मगर अब नहीं। यूरोप जैसा ‘खेल-तमाशा’ हमारे भारत में भी जमकर हुआ है। राजा-महाराजाओं से लेकर अंग्रेज अधिकारियों ने अपनी
मनमानी की है।
शौक और क्रूरता का यह खेल प्रतिबंधित हो गया है। इस श्रेणी के लोग अब नहीं दिखते किन्तु चंद पैसों के लालच में निरीह जानवरों को मार, उनकी बिक्री अभी भी हो रही है। सरकार की पैनी नजर है और पकड़े जाने पर सजा का प्रावधान भी है लेकिन अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी और सतर्कता के अभाव में ऐसी घटनाओं पर पूर्ण रूप से लगाम नहीं लग सका है।
केन्या भ्रमण के दौरान बार-बार यही ख्याल आता रहा, इन छोटे-बड़े जानवरों की अपनी एक अलग दुनियां है जिसमें वो अपने तरीके से, अपना कानून बनाकर रहते हैं और हम उनमें खलल डालते हैं। गर यही जीव हमारे शहरी इलाकों में प्रवेश करते हैं उस वक्त हम उन्हें पीट-पीट कर मार डालते हैं, उन्हें भगाने के सौ उपाय होते हैं – अगर यही सुलूक ‘वो’ भी हमारे साथ करें !
हमारा ये कर्तव्य बनता है कि हम जंगलों को बचाएं, उनका दोहन न करें ताकि ये सुन्दर जीव, खूबसूरत पक्षीगण बचे रहें। प्रकृति ने बहुत सोच-समझकर यह संसार रचा है। हाँ, ऑलरेडी हम प्रकृति का बहुत नुकसान कर चुके हैं जिसका खामियाजा भी भुगत रहे हैं। हम जैसा करेंगे, वैसा भरेंगे। हमारे लिए आत्ममंथन बहुत जरूरी है। कहीं ऐसा न हो हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाए ! फिर तो सारी ‘बुद्धिमानी’ धरी की धरी रह जाएगी। ये धरती बड़ी खूबसूरत है इसे बर्बाद न करें। किसी ने खूब कहा है – जियो और जीने दो।
यहाँ सौमिक और साथी (रिनी) की मैं बहुत आभारी हूँ जिनकी वजह से मुझे कई सुन्दर तस्वीरें प्राप्त हुई जिसे इस पुस्तक में यथास्थान रख दिया है। इसके अलावा अपने सभी सहयात्रियों व टूर लीडर अंजन की शुक्रगुजार हूँ जिनकी वजह से केन्या यात्रा सफल व
यादगार बन सकी।
और… इस पुस्तक को सजाने-सँवारने का काम नन्दलाल साव ने बड़े मनोयोग से किया है – स्पेशल थैंक्स।
30 जनवरी 2020 माला वर्मा
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