बंद आँख से खुली आँख तक
कवि राजू साव की कविताएँ जीवन के जटिल अनुभवों, समाज के कठिन पहलुओं और व्यक्तिगत संवेदनाओं का सूक्ष्म और गहन चित्रण करती हैं। उनके लेखन में एक विशेष प्रकार की सच्चाई और संवेदनशीलता है, जो पाठकों को न केवल विचार करने पर मजबूर करती है, बल्कि उन्हें अपने समाज और स्वयं के जीवन के बारे में सवाल उठाने के लिए प्रेरित करती है। यहाँ उनकी कुछ प्रमुख कविताओं का विश्लेषण करेंगे और इसके माध्यम से कवि के दृष्टिकोण और विचारों को गहराई से समझने का प्रयास करेंगे।
“बंद आँख” –
“हमे सब देखना है
अपनी खुली आँखों से
और कानून अपनी बंद आँखों से
हमे देखेगा”
यह कविता न्याय व्यवस्था की खामियों पर प्रश्न उठाती है। कवि ने यहाँ कानून की दृष्टिहीनता की ओर इशारा किया है। भारतीय न्याय व्यवस्था की आलोचना करते हुए यह कविता बताती है कि कैसे कानून अपनी बंद आँखों से समाज को देखता है, जबकि सामान्य लोग अपनी खुली आँखों से समाज की सच्चाइयों को अनुभव करते हैं। कवि ने यहाँ पर न्याय व्यवस्था को ‘काली पट्टी’ और ‘बंद आँख’ से जोड़ा है, जो एक तीखा व्यंग्य है। इस कविता में न्याय की निष्पक्षता और आम जनता की उम्मीदों के बीच के अंतर को समझाने की कोशिश की गई है।
“मेरा छोडो” –
“मेरा छोडो,
मैं तो किसी तरह जी लूँगा
चलना ना आया तो हवा से पूँछ लूँगा
बैठना-बिठाना ना आया तो दिशाओं से पूँछ लूंगा”
यह कविता जीवन के संघर्ष को दर्शाती है। कवि यह बताता है कि जीवन चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, उसे जीने की ताकत और उम्मीद भीतर छुपी रहती है। किसी भी स्थिति में वह अपनी जिद को छोड़ने को तैयार नहीं है। इस कविता में कवि की आत्मविश्वास और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाया गया है। वह समाज और व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों को सरल तरीके से स्वीकार करते हुए कहते हैं, “मैं किसी भी तरह जी लूंगा।”
“कुर्बान को तैयार है नारी” –
“तम में ज्योति है नारी
पारस नहीं मोती है नारी
निर्जल की पानी है नारी
इस स्वार्थ जगत में दानी है नारी”
यह कविता नारी की शक्ति और उसके संघर्ष को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है। कवि ने नारी को ‘पारस’, ‘निर्जल का पानी’ और ‘तम में ज्योति’ के रूप में चित्रित किया है, जो अपने आप में शक्तिशाली और संघर्षरत है। नारी को अब ‘नाजुक’ के बजाय एक ‘दृढ़ दीवार’ के रूप में दर्शाते हुए कवि उसकी मानसिक और शारीरिक ताकत को स्वीकार करता है। यह कविता नारी के प्रति समाज की संकुचित सोच और उसकी वास्तविकता को उजागर करती है।
“लाल किला” –
“लाल किला को लाल नहीं होनी चाहिए
उसे कभी काग्रेंस
कभी बीजेपी
निर्दल
क्योंकि हर पार्टी का एक रंग है”
यह कविता राजनीति और उसकी नीतियों पर तीखा व्यंग्य है। कवि ने लाल किले के लाल रंग को राजनीतिक दलों से जोड़ते हुए यह दिखाया है कि राजनीति के रंग समय-समय पर बदलते रहते हैं। कवि यह भी बताता है कि अगर लाल किला सिर्फ एक राजनीतिक दल का प्रतीक बन जाए, तो यह देश की सांस्कृतिक धरोहर से दूर हो जाएगा और इस स्थल का महत्व फीका पड़ जाएगा।
“कोलकाता” –
“आज नहीं मैं कल कहूँगा
कि कोलकाता कैसा है
क्योंकि
कोलकाता पहले सा ही है”
यह कविता कोलकाता की सामाजिक और भौतिक परिस्थितियों का प्रतिबिंब है। कवि ने कोलकाता को एक ऐसे शहर के रूप में प्रस्तुत किया है जहाँ समय के साथ कोई बदलाव नहीं आया है। यहाँ की गलियाँ, लोगों की दिनचर्या और यहां की राजनीति जैसी चीजें पहले जैसी ही हैं। कवि कोलकाता की स्थिति को न केवल भौतिक रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी स्थिर और जटिल रूप में दर्शाता है।
“जनता” –
“जनता क्या है
जनता तो
घंटों से बन रही बकुचा पेट में
पेशाब है
जो समय पर निकलती है
कभी असमय भी”
यह कविता राजनीति और जनता के रिश्ते पर सवाल उठाती है। कवि ने ‘जनता’ को एक ऐसी अज्ञेय और अस्थिर इकाई के रूप में चित्रित किया है, जिसका अस्तित्व हमेशा बदलता रहता है। यहाँ पर जनता को ‘पेट में बकुचा’ के रूप में दिखाया गया है, जो समय की प्रवृत्तियों के अनुसार बदलता रहता है। यह कविता न केवल राजनीति की नाकामी को दर्शाती है, बल्कि समाज के जनहित में काम करने की आवश्यकता पर भी जोर देती है।
राजू साव की कविताएँ जीवन के संघर्षों, समाज की असमानताओं और राजनीतिक विडंबनाओं पर गहरी टिप्पणी करती हैं। उनका लेखन केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों का ही नहीं, बल्कि समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण का भी प्रतिफल है। उनकी कविताएँ हमें न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से समृद्ध करती हैं, बल्कि समाज के गहरे मुद्दों पर सोचने के लिए भी प्रेरित करती हैं। राजू साव की कविताएँ हमारे समाज की सच्चाइयों को उजागर करती हैं और हमें जीवन के संघर्षों को अपने तरीके से समझने की प्रेरणा देती हैं।
सादर धन्यवाद…
नन्दलाल साव
संस्थापक व संचालक
अंजनी प्रकाशन
हालीशहर, उत्तर 24 परगना
पश्चिम बंगाल, मो. 8820127806
दिनांक : 26 फरवरी, 2025
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