किसी सरस्वती पुत्री की सारस्वत साधना का आकलन या मूल्यांकन करना आसान काम नहीं है, विशेषतः उस सरस्वती पुत्री की सारस्वत साधना का आकलन करना तो और भी कठिन कार्य है, जिसका व्यक्तित्व और कृतित्व बहुआयामी एवं चुंबकीय हो, जिसके चिंतन का आकाश बहुत व्यापक और विस्तृत हो और जो एक साथ कई भाषाओं में निष्णात हों। ऐसी वाणी साधिका का बहिरंग जितना व्यापक होता है, अंतरंग उससे कहीं अधिक गहरा। श्रीमती नमी कुमार ऐसी ही सरस्वती की वरद् पुत्री हैं, जिन्होंने राम भक्त हनुमान पर अपनी लेखनी चलाकर अपनी लेखनी को पवित्र किया है।
परमादरणीय बंधुवर श्री आर. के. चौधरी द्वारा प्रेषित और श्रीमती नमी कुमार द्वारा लिखित ‘वीतराग हनुमान’ के पीडीएफ को बड़े मनोयोग पूर्वक आद्योपांत पढ़ गया। उनके द्वारा मूलतः 12 शीर्षकों में लिखित वीतराग हनुमान अपने आप में एक शिष्ट और विशिष्ट कृति है। शिष्ट इसलिए कि इसके प्रतिपाद्य हनुमान जी भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक शिष्ट हैं और विशिष्ट इसलिए कि अपनी शिष्टता के कारण राम भक्तों में हनुमान जी सर्वाधिक विशिष्ट हैं। स्वयं प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी की शिष्टता और विशिष्टता का प्रमाण पत्र अपने मुखारबिंद से महाकवि तुलसीदास कृत श्री रामचरितमानस में दिया है:-
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।
देखउं करि विचार मन माहीं।
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता।
लोचन नीर पुलक अति गाता।
सुनि कपि जिय मानसि जनि ऊना।
तै मम प्रिय लछुमन ते दूना।
समदरसी मोहि कह सब कोऊ।
सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ।
महाकवि तुलसीदास ने मानस के सुंदर काण्ड के प्रारंभ में राम भक्त हनुमान की वंदना करते हुए 8 विशेषणों का साभिप्राय प्रयोग कर उनकी महिमा का गान किया है: –
अतुलित बल धामं, हेम शैलाभदेहम्।
दनुज वन कृसानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकल गुणनिधानमं, वानराणामधीशं,
रघुपति प्रिय भक्तं, वातजातं नमामि।
हनुमत रामायण में उनकी वंदना करते हुए लिखा गया है कि :-
मनोजवं मारुततुल्य वेगं,
जितेन्द्रियं बुद्धि मतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानर यूथ मुख्यं,
श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये।
वास्तव में श्री हनुमान जी संपूर्ण श्रीराम कथा के सुदृढ़ आधार -स्तंभ हैं। वे राष्ट्रीय भावनाओं की चिंतनपूर्ण प्रतीकात्मक अभिव्यंजना हैं और उनकी अभिव्यंजना की विशिष्ट अभिव्यक्ति इस कृति में अवलोकन-विलोकन करने को मिलती है। अतएव हम कह सकते हैं कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हनुमत चरित्र विश्लेषण के क्षेत्र में प्रस्तुत कृति एक मान दण्ड स्वरूप है। नमी कुमार की यह कृति हनुमत चरित्र का विशिष्ट विश्लेषक ग्रंथ है। सनातन चेतना के रमणीय रक्षक एवं संवाहक , शक्ति सुमेरु,सामवेद के गायक, संगीत के परमाचार्य, मंगलमूर्ति, विद्यावारिधि, राक्षसान्तक श्रीराम दूत,शिवातार हनुमान जी वस्तुतः सृष्टि के महानायक हैं। उनका गौरवशाली जीवन दर्शन अनन्य श्रीराम-भक्ति एवं सलिल शक्ति का आदरणीय आंख्यान है। उनके जीवन की कथा (हनुमान-कथा) हमारे देश भारतवर्ष की ऐसी साहित्यिक निर्मल निधि है, जो युगों-युगों से यहां की जनता को प्रकाश देती आई है और देती रहेगी भी। श्री हनुमान जी महाराज सार्वदेशिक, सार्वकालिक और सार्वभौमिक होने के साथ-साथ सर्वजन हिताय एवं सर्व जन सुखाय भी है।वे प्रत्येक देश, प्रत्येक काल एवं प्रत्येक व्यक्ति के लिए हैं।
इस महत्वपूर्ण कृति की लेखिका श्रीमती नमी कुमार ने इस कृति में वैदुष्य पूर्ण, श्रमसाध्य, चिंतन साध्य,गहनतम गवेषणा से मंगलागार, वानराकार, विग्रह पुरारि की बहु आयामी प्रतिभा एवं जीवनादर्शों का मूल्यांकन आध्यात्मिक, साहित्यिक, दार्शनिक, ऐतिहासिक, राष्ट्रीय एवं सामाजिक संदर्भों में अध्ययन एवं श्रम की सुचिंतित दिशा निर्दिष्ट एवं ऐतिहासिक सत्यता का उद्घाटन करते हुए साहित्य जगत को गौरवान्वित एवं नयी पीढ़ी को उपकृत किया है।
वस्तुत:वही रचना उत्तम मानी जाती है या हो सकती है, जिसका संबंध वर्तमान से हो। रचना में ऐसी अभिव्यक्ति होनी चाहिए, जिससे ज्ञात हो कि प्रणेता और पाठक का संबंध अभिन्न है।इस कृति की विदुषी प्रणेता ने उदात्त भारतीय संस्कृति के विराट् प्रेरणास्पद शक्ति पुंज श्रीहनुमान जी महाराज के ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्वरूप को वर्तमान के धरातल पर रूपायित कर चारित्रिक महापतन के इस कठिन काल में समाज की महती आवश्यकता की पूर्ति की है। रामायण काल के हनुमान राष्ट्र भक्त, लोक सेवक और लोक निर्माता हैं। उनकी वही लोक सेवा और लोक निर्माण शक्ति, लोक नायकत्व एवं राष्ट्र भक्ति आज भी स्वतंत्र भारत के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है। उनका स्थान राजगद्दी नहीं, संसार है। सत्ता सुख भोग नहीं, दीन दुखियों, पीड़ितों एवं आदर्श जनों की सुरक्षा है।
मेरी जानकारी में विश्व में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो किसी न किसी कार्य में कभी न कभी असफल न हुआ हो।कुछ लोग इसलिए अधिक सफल होते हैं, क्योंकि वे अपनी प्रत्येक आवश्यकता के कारणों की खोज करते हैं और अगली बार प्रयत्न करते समय सावधान रहते हैं। कुछ लोग दूसरों की सफलता का लेखा जोखा रखते हैं और स्वयं प्रयत्न करने के पूर्व ही अपनी सफलता के पथ का मानचित्र तैयार कर लेते है।
किंतु भारत के विशाल प्राचीन साहित्य में एक ऐसा अद्भुत चरित्र भी है,जो कभी असफल नहीं हुआ:– वे हैं राम भक्त वीतरागी हनुमान जी महाराज। उन्हें नये से नया और कठिन से कठिनतम कार्य दिया गया और हर बार वे सफल सिद्ध हुए।सफलता भी ऐसी कि उन्हें घर-घर में संकट मोचक देवता के रूप में पूजा जाने लगा।
प्रस्तुत कृति वीतरागी हनुमान जी महाराज के जीवन चरित्र के माध्यम से उन गुणों, भावों, विचारों, व्यवहारों और जीवन मूल्यों की खोज करती है,जिसके होने से हनुमान जी महाराज अपने ऊपर आए हर दायित्व, हर कार्य को सफलतापूर्वक करते चले गये।
रामायण, महाभारत अथवा ग्रीक त्रासदियों के नायक-प्रतिनायकों के जीवन के वृत्त का विश्लेषण करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि व्यक्ति की सफलता या विफलता के कारण वस्तुतः अपने व्यक्तित्व में ही सन्निहित होते हैं। वीतराग हनुमान आपको सफलता के राजपथ पर अग्रसर करने का नूतन प्रयास है जिस पर चल कर आप अपनी सफलता सुनिश्चित कर सकें। एतदर्थ विदुषी रचनाकार नमी कुमार थोक भाव से बधाई की पात्रा हैं।
ओज-प्रसाद और माधुर्य गुण समन्वित हनुमद्-भक्ति की गौरवशालिनी गंगा को प्रबल वेग से प्रवाहित करने वाली भाषा शिल्पी, लेखनी की जादूगरनी श्री मती नमी कुमार जी भक्ताग्रगण्या श्री हनुमान जी महाराज की ही भांति, उन्हीं की अहेतुकी कृपा से ग्रंथाग्रगण्या के साथ-साथ लोमषायु यशस्विनी हो जाएं-ऐसी मेरी हार्दिक मनोकामना और श्रीहनुमान जी महाराज से प्रार्थना है:
मिले सदा शुभ हर्ष आपको,
नहीं कभी आए अपकर्ष।
सतत् सुधा साहित्य प्रवाहित,
लिखे लेखनी यश -उत्कर्ष।
शुभैषी,
प्रोफेसर डॉ जंग बहादुर
पूर्व अध्यक्ष हिंदी, विभाग, राँची विश्वविद्यालय
प्रोफेसर बहादुर हिंदी साहित्य के विशिष्ट ज्ञाता
और तुलसी साहित्य के विशेषज्ञ
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