ज़िंदगी जियो हर पल
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जिंदगी जियो हर पल, मेरी कविताओं की पहली हिंदी पुस्तक है। जीवन एक बहुरूप दर्शक की तरह है। मेरी पुस्तक विभिन्न विषयों पर रचनाएँ लिखने का एक प्रयास है जो जीवन में आने वाले विभिन्न उतार-चढ़ावों को दर्शाती है। यह पुस्तक उन कविताओं का संकलन है जहां मैंने आत्म विकास, परिवार, रिश्तों और दोस्तों से लेकर जीवन के विभिन्न डिजाइनों और रंगों पर विचार किया है।
सरल विचार के साथ, मैंने कविताएँ लिखने की इस यात्रा को शुरू किया जो हमारे दैनिक जीवन की घटनाओं, या खुशी से संबंधित है। जब मेरे दिमाग में विचार उमड़ रहे थे, तो मैं अपनी कलम को कविताएँ लिखने तक सीमित नहीं रख सका।
मैं युवा और पुरानी पीढ़ी से समान रूप से जुड़ने का इच्छा रखता हूं। जब आप मेरी कविताएँ जैसे अपना देश, चाय का कप, कॉलेज के दिन, व्हाट्सएप का मोबाइल, मन की शांति आदि पढ़ेंगे तो आप इससे जुड़ पाएंगे क्योंकि विषय हमारे दैनिक जीवन से लेकर हमारे परिवेश तक, हमारी आदतों तक विस्तारित हैं। पेशेवर जीवन, दोस्ती और नेटवर्किंग। यह गांव में मेरे प्रारंभिक युवा जीवन से लेकर शहर में वरिष्ठ नागरिक जीवन से जुड़े रोमांच के मेरे स्वाद को सामने लाता है।
कविता लिखने से मुझे सेवानिवृत्ति के बाद जीवन का एक नया उद्देश्य मिला है। जब मैं कोविड अस्पताल में भर्ती होने के बाद संघर्ष कर रहा था तो इसने मुझे प्रेरित किया था और प्रोस्टेट कैंसर के खिलाफ मेरी लड़ाई में यह अभी भी मुझे प्रेरित करता है।
इस पुस्तक के माध्यम से मैं उन सभी लोगों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने इस कविता पुस्तक को लिखने की यात्रा में मुझे प्रोत्साहित किया। उन सभी ने मेरे कौशल और ज्ञान की उन्नति में योगदान दिया। धन्यवाद को दर्शाने का काम करती है।
– सुरेन्द्र कुमार कौल
Weight | 160 g |
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Dimensions | 24 × 14 × 1.5 cm |
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सुरेन्द्र कुमार कौल की काव्य साधना
सुरेन्द्र जी की कविताएं धरातल से जुड़ी हुई हैं। मानवीय स्वभाव को प्रकृति से जोड़ने की चेष्टा है और दबे पांव अध्यात्म को भी छूने का अप्रत्यक्ष प्रयास है। चाँद, तारे, धरती, गगन, आकाश… स्थायी तत्व हैं। पंच महाभूत कहीं विलोपित नहींं होते। इसी कारण उनके बिगड़ते अस्तित्व की भी फिक्र दिखती है – कहीं सूखा कहीं बरसात, असामयिक अनियंत्रित बाढ़, भूस्खलन, सिकुड़ते जंगल… ग्लोबल वार्मिंग का अलार्म… पानी का महत्व… सभी कुछ आपके सृजन का हिस्सा हैं।
एक जगह ‘कोरा कागज’ में जीवन का सार-सा दिखता है… जब तक आप में शक्ति तब तक लड़ना है, परिस्थितियों का सामना करना है, अन्यथा जीवन पुराने अखबार-सा बन कर रह जाएगा…
जाते हुये वक्त का गम ‘डाकघर’ में पढ़ा जा सकता है। कहीं हास्य भी है ‘फैशन की खरीदारी ने भर दिये घर के वार्ड रोब, जेबें कर दी खाली – जोर-जोर बजाओ ताली…
जहां ‘माँ’ आपके कर्मक्षेत्र का हिस्सा है वहीं मृत्यु का अट्टहास भी कवि सुनते हैं। कर्मों का बहीखाता ही विनाश से बचाएगा…
कुल मिलाकर प्रकृति से लेकर मानवीय रिश्ते, भावनाएं व समस्याएँ सभी कुछ आपकी रचनाओं में समाहित है।
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