भाटिन अंगुरिया छूंछ
₹250.00
‘भाटिन अंगुरिया छूंछ’ यह मेरा छठा कहानी संग्रह है। ‘अपनी बात’ लिखते समय मेरी वही पुरानी बातों की पुनरावृत्ति हो रही है – इन्हें कहानी न समझ मेरा अनुभव ही समझें। इसमें कुछ कहानियाँ पचास-साठ के दशक की हैं। उनदिनों लोगों का सोच-विचार, आचार-व्यवहार, विशेषकर बिहार के भोजपुरिया समाज का, कैसा था इसकी एक झाँकी मिलती है। मैंने उच्चवर्ग को करीब से नहीं देखा है अतः ये कहानियाँ मध्य तथा निम्नवर्ग के लोगों की कहानियाँ हैं। अपने सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक अंधविश्वासों से निकलने की कोशिश करती ये कहानियाँ शायद भविष्य में, कभी समाज का दर्पण साबित होंगी।
इस कहानी संग्रह का आवरण चित्र गूगल से लिया गया है। पुस्तक के बैक कवर पर जो चंद तस्वीरें डाली गईं हैं वो मेरे मोबाइल से ली गई है। यह हुकुमचंद जूट मिल के रिवर साइड कैंपस की तस्वीरें हैं जहां मैंने अपनी जिंदगी के 43 वर्ष गुजार दिए। इससे सुंदर जगह दुनिया में और कहाँ हो सकती है! इस जूट मिल, इस कैंपस का ढेरों आभार जिसने मुझे जिंदगी की हर खुशी प्रदान की… यहाँ की जेट्टी, फूल-पौधे, इतना सुंदर कैंपस और ‘ढलता सूरज’ जिसे मैंने एक दिन क्रेन से उठा अपने हृदय में बसा लिया था। इसी कवर पर मेरी दो पोती भी मौजूद है। छोटकी मायरा और बड़की आन्या। अनुक्रम पृष्ठ पर मेरी पोती आन्या (अरित्री) द्वारा बनाई गई एक छवि दी गई है। कहानियाँ कैसी लगीं, जरूर बताएं।
इस किताब को सजाने-संवारने में श्री नन्दलाल साव ने बड़ी मेहनत की है – अशेष धन्यवाद।
सादर…
माला वर्मा
Weight | 159 g |
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Dimensions | 24 × 14 × 1.5 cm |
80 in stock
मेरे लिए बड़े ही गर्व की बात है कि आज मैं आदरणीया माला वर्मा जी की नई पुस्तक ‘भाटिन अंगुरिया छूंछ’ के बारे में कुछ लिखने जा रहा हूँ। जब से मैं उनकी रचनाएँ पढ़ रहा हूँ, हर पुस्तक एवं रचना में कुछ न कुछ नया मिलता ही है। उनकी लेखनी की धार हिन्दी साहित्य की हर विधा में काफी पैनी है। यात्रा वृतांत एवं यात्रा मार्गदर्शिका के क्षेत्र में यूँ तो ढेरों पुस्तकें मिल जाती हैं पर यदि हिंदी भाषा में ढूंढें तो शायद ही कहीं कुछ मिल पाता है। पर यदि आप यात्रा वृतांत पर इनकी लिखी पुस्तकें देखें तो ऐसा लगता है जैसे जिस देश की गाथा लिखी हुई है, जीवंत रूप में हम उस देश में विचरण करने लगे हों। वाकई अनुकरणीय है। आप सोच रहे होंगे कि पुस्तक के विषय वस्तु से हट कर मैं कुछ और ही लिखने लगा।
नहीं! ऐसा कुछ नहीं है। दरअसल जिस स्थान में रहीं उनकी लेखनी, कौशल, लोक कथाएँ एवं दंत कथाएँ वहाँ की भाषा-परिवेश के अनुसार ही वे महसूस करती हैं तथा उस परिवेश के अनुकूल ही उनका सजीव चित्रण करती हैं। इस पुस्तक में भी उनकी यही खासियत उभर कर दीप्तिमान हो रही है। साफ-सपाट और सीधे मन वाले ग्रामीण एवं अर्ध-शहरी वातावरण, शिल्पांचल के थकाऊ और उबाऊ माहौल में से भी खट्टी-मीठी बातों को चुनकर, मोती के समान पिरोकर सुंदर कहानियों में पिरो देना इनकी खासियत है। ऐसा कौन होगा जो नींद में मिस्ड कॉल आ जाने से चिढ़ता न हो, वह भी लैंड लाइन के जमाने में जब आपको फोन उठाने के लिए एकाध मीटर चलकर जाना पड़ता था या फिर बार-बार मिस्ड कॉल करने वाले से चिढ़कर अपना फोन बंद न कर लेता हो। पर इन्होंने बार-बार मिस्ड कॉल करने वाली लड़की से बात कर उसके मन की ही व्यथा नहीं जाना बल्कि उसके साथ आत्मीय संबंध भी जोड़ लिया। यह सब विवरण आपको इस पुस्तक की कहानी में मिल जाएगा। इसी प्रकार से कई और संदर्भ हैं जो मानवीय संबंधों तथा रोज कि उठापटक से भरी जिंदगी से चयनित फूलों की माला के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। थोड़ी देर के लिए आपको काल्पनिक भी लग सकते हैं पर जैसे-जैसे आप पुस्तक की गहराई में उतरते जाएंगे, सोंधी मिट्टी की खुशबू आपको बरबस अपनी ओर खींचती चली जाएगी। मेरा दावा है कि इन कहानियों को पढ़ने के बाद आप इसके पात्रों को सजीव रूप में अपने आस-पास तथा उनसे बात करते हुए खुद को महसूस करेंगे। इसी तरह से अन्य कहानियों में भी विविधताओं के साथ आपको जीवन के हर रंग में साहित्य एवं मानवीकरण की झलक महसूस होगी। आइए शुरुआत करें …
सादर,
डॉ. बिनय कुमार शुक्ल
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