आर्कटिक : ध्रुवीय भालू का देश

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आर्कटिक : एक साहसी यात्रा का दस्तावेज
“आर्कटिक : ध्रुवीय भालू का देश” माला वर्मा द्वारा रचित एक अद्वितीय यात्रा संस्मरण है, जिसमें पाठक को उस बर्फीली दुनिया में ले जाया जाता है, जहां बर्फ, ठंड और अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के बीच जैसे कोई मानवता की कहानियाँ बुन रहा है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने अपनी यात्रा के अनुभवों को न केवल वर्णित किया है, बल्कि उन भावनाओं और विचारों को भी साझा किया है जो इस यात्रा के दौरान उनके मन में उपजे।
अद्वितीय यात्रा अनुभव : लेखिका ने इस यात्रा में अपनी आँखों से देखे गए दृश्यों को बड़े ही दिलचस्पी से प्रस्तुत किया है। आर्कटिक की बर्फीली चादरों के बीच ठंडी हवा का स्पर्श, धूप की चकाचौंध और वहां के जंगली जीवन की झलकियाँ इस पुस्तक को जीवंत बनाती हैं। माला वर्मा ने अपने अनुभवों में बताया है कि कैसे आर्कटिक की प्राकृतिक सुंदरता ने उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया और उनकी दृष्टि को बदल दिया।
पुस्तक में लेखिका ने आर्कटिक के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की है, जैसे हेमसेडालेन और स्वीब्रीन, जहां उन्होंने अद्वितीय झरनों, बर्फीले पहाड़ों और रंग-बिरंगे आर्कटिक फूलों का अनुभव किया। इस यात्रा में उन्होंने केवल दृश्य सौंदर्य का आनंद ही नहीं लिया, बल्कि वहां के जीव-जंतुओं, विशेषकर पोलर बियरों के प्रति अपनी आदर भावना भी व्यक्त की है। उनकी लेखनी में यह स्पष्ट होता है कि कैसे ये जीव आर्कटिक के पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनके संरक्षण की आवश्यकता है।
सांस्कृतिक और भौगोलिक अध्ययन : “आर्कटिक : ध्रुवीय भालू का देश” केवल एक यात्रा संस्मरण नहीं है, बल्कि यह आर्कटिक क्षेत्र के सांस्कृतिक और भौगोलिक पहलुओं पर भी गहन विचार करता है। माला वर्मा ने पुस्तक में आर्कटिक के जनजातियों, उनके रहन-सहन और उनके पारंपरिक ज्ञान का उल्लेख किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि किस प्रकार स्थानीय लोग अपने पर्यावरण के साथ संतुलन बनाकर जीवनयापन करते हैं।
लेखिका ने आर्कटिक क्षेत्र में पर्यावरण परिवर्तन के मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित किया है, जिससे यह पुस्तक न केवल मनोरंजक है बल्कि विचारणीय भी है। आज के समय में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को देखते हुए, यह पुस्तक एक चेतावनी के रूप में भी काम करती है कि हमें अपने पर्यावरण का संरक्षण कैसे करना चाहिए।
प्रेरणादायक यात्रा : माला वर्मा की लेखनी में यात्रा का केवल विवरण नहीं है, बल्कि उनकी प्रेरणा और जिज्ञासा भी साफ झलकती है। उन्होंने यात्रा के दौरान महसूस किए गए आनंद, आशंका और अनिश्चिंतताओं को भी पाठकों के सामने रखा है। जब वह बर्फीले पहाड़ों पर चढ़ रही थीं, तो उनकी आंतरिक शक्ति और साहस ने यह सिद्ध कर दिया कि उम्र केवल एक संख्या है, और जिज्ञासा और साहस से भरी आत्मा किसी भी बाधा को पार कर सकती है।
इस पुस्तक में माला वर्मा ने न केवल अपनी यात्रा के अनुभवों को साझा किया है, बल्कि उन्होंने पाठकों को प्रेरित भी किया है कि वे अपनी सीमाओं को चुनौती दें और नई जगहों का अन्वेषण करें। उनका मानना है कि यात्रा केवल भौतिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह आत्मिक यात्रा भी है, जो हमें नए अनुभवों, विचारों और दृष्टिकोणों से समृद्ध करती है।
माला वर्मा का व्यक्तिगत अनुभव : माला वर्मा की यह पुस्तक उनके समर्पण और कठिन परिश्रम का परिणाम है। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान दर्जनों तस्वीरें खींची हैं, जो इस पुस्तक को और भी आकर्षक बनाती हैं। उनकी लेखनी में सरलता और संवेदनशीलता है, जिससे पाठक आसानी से जुड़ जाते हैं। वह अपने विचारों को बड़े ही सहजता से व्यक्त करती हैं, जिससे पाठक उनकी यात्रा में खुद को शामिल महसूस करते हैं।
इस पुस्तक में उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान आई कई मजेदार और रोमांचक स्थितियों को भी साझा किया है। जैसे जब उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर बर्फ पर चलने का अनुभव किया, या जब उन्होंने बर्फीले झरनों के पास अपनी तस्वीर खींची। ऐसे छोटे-छोटे अनुभव पाठकों को हंसाने के साथ-साथ विचार करने पर भी मजबूर करते हैं।
माला वर्मा का लेखन और प्रकाशन का सफर : माला वर्मा की लेखनी का सफर “कहानी संग्रह” से लेकर “यात्रा संस्मरण” तक फैला हुआ है। उनके द्वारा लिखित “बसेसर की लाठी”, “नीड़”, “घुघली की माई” जैसी कहानियाँ पाठकों को न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डालती हैं। उनकी पुस्तकें एक पाठक को विचारों की गहराइयों में ले जाती हैं और उन्हें एक नई दृष्टि से देखने का अवसर प्रदान करती हैं।
उनकी यात्रा संस्मरणों में “यूरोप”, “अमेरिका में कुछ दिन”, “आइये मलयेशिया-सिंगापुर-थाईलैंड चलें”, “चीन देश की यात्रा”, “जापान”, “अंटार्कटिका : एक अनोखा महादेश”, “आर्कटिक : ध्रुवीय भालू का देश” आदि शामिल हैं, जो उनके अनगिनत अनुभवों और दुनिया की विविधता का वर्णन करती हैं। हर पुस्तक में उनकी अनूठी लेखनी और गहराई से भरे विचार होते हैं, जो उन्हें एक उत्कृष्ट लेखक बनाते हैं।
“आर्कटिक : ध्रुवीय भालू का देश” की विशेषता यह भी है कि यह माला वर्मा की दूसरी ध्रुवीय यात्रा है। इससे पहले, उनकी पुस्तक “अंटार्कटिका: दक्षिणी ध्रुव” आई थी, जो चंद्रयान 3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के साथ पाठकों के समक्ष आई। इस प्रकार, माला वर्मा ने दोनों ध्रुवों को एक ही जीवन में छू लिया, जो हर किसी के लिए संभव नहीं है। यह उनकी अद्वितीयता और साहस का प्रमाण है, जो उन्हें इस क्षेत्र में एक विशेष स्थान प्रदान करता है।
“आर्कटिक : ध्रुवीय भालू का देश” माला वर्मा की एक अद्वितीय कृति है, जो पाठकों को न केवल आर्कटिक की ठंडी वादियों में ले जाती है, बल्कि उन्हें मानवता और प्रकृति के संबंधों की गहराई में भी उतारती है। यह पुस्तक एक यात्रा की कहानी के साथ-साथ एक प्रेरणा भी है, जो हमें यह याद दिलाती है कि दुनिया कितनी सुंदर और विविधतापूर्ण है, और हमें इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।
इस पुस्तक को पढ़ते समय पाठक अपने भीतर की यात्रा को भी महसूस करेंगे, और यह उन्हें नई संभावनाओं की ओर ले जाएगी। माला वर्मा ने अपनी लेखनी के माध्यम से हमें यह दिखाया है कि यात्रा केवल भौतिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह आत्मिक और मानसिक विकास का एक माध्यम भी है।
इसलिए, “आर्कटिक : ध्रुवीय भालू का देश” को हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिए, ताकि वे इस अद्भुत यात्रा के अनुभवों का आनंद उठा सकें और अपने भीतर की यात्रा को भी खोज सकें।

सादर धन्यवाद…
नन्दलाल साव
संस्थापक व संचालक
अंजनी प्रकाशन
हालीशहर, उत्तर 24 परगना
पश्चिम बंगाल, मो. 8820127806
दिनांक : 29 नवम्बर, 2024

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