बहुचर्चित साहित्यकार सुश्री माला वर्मा की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
आज सम्पूर्ण विश्व में उन्नति और विकास हुआ है,उसके पीछे अपने विभिन्न उद्देश्यों को लेकर लोगों द्वारा की गयी यात्राएं हैं। यात्रा सामान्य तौर पर व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक किया गया परिभ्रमण है। छोटी यात्रा हो या बड़ी,सबके अपने-अपने उद्देश्य हैं। कुछ लोग रोजी-रोटी की तलाश में यात्राएं करते है,कुछ शोध कार्य के लिए घर से निकलते हैं और बहुतायत लोग देश-दुनिया को देखने, समझने के लिए परिभ्रमण करते हैं। हम एक स्थान पर रहते-रहते ऊब महसूस करते हैं, तब मनोरंजन के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों की यात्राएं करते हैं। पाश्चात्य देशों में यात्रा करने का प्रचलन कुछ अधिक ही है, वे दुनिया के सुदूर देशों तक की यात्राएं करते हैं और सुखद अनुभूतियों के साथ वापस लौटते हैं। हमारा देश भी इससे अछूता नहीं है। दुनिया भर के लोग भारत आते हैं और यहाँ के लोग भी दुनिया के देशों की यात्राएं करते हैं।
ऐसी ही एक बहुचर्चित लेखिका सुश्री माला वर्मा जी हैं जो साहित्य लेखन के साथ-साथ विश्व के अनेक देशों की यात्राएं करती रहती हैं और हर यात्रा के उपरान्त यात्रा संस्मरण लिख देती हैं। उनके अनेक कविता, कहानी संग्रह और यात्रा संस्मरण छपे हैं। कम्बोडिया-वियतनाम की यात्रा पर लिखा हुआ संस्मरण ‘कम्बोडिया-वियतनाम’ मैंने पढ़ा और उसकी समीक्षा की है। कोरोना काल में उनकी यात्रा थोड़ी बाधित रही परन्तु 26 अप्रैल 2022 को उन्होंने नये सिरे से दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की शुरुआत की। माला वर्मा जी अपने डाक्टर पतिदेव के साथ हाजीनगर में रहती हैं और हर यात्रा दोनों साथ-साथ करते हैं। पहले की तरह यह यात्रा भी टूर एजेन्सी ‘गो एवरी व्हेयर’ के साथ हो रही है। इस दल में कुछ सहयात्री पूर्व-परिचित हैं और कुछ अपरिचित भी। सभी जोश में हैं, उत्साहित हैं। कोलकाता से सबको मुम्बई पहुँचना है और वहीं से सभी अगली उड़ान भरने वाले हैं। नैरोबी के लिए अगली फ्लाइट रात के 2-30 बजे थी जो 27 अप्रैल की सुबह 10:30 बजे उड़ान भरी। माला जी लिखती हैं, ग्रुप में होने के कारण यात्रा सुखद होती है। उन्होंने यात्रा की समय सारणी का पूरी सावधानी से उल्लेख किया है। देखे हुए दृश्यों के सन्दर्भ में लिखती हैं-कभी नदी, कभी समुद्र, कभी पहाड़, कभी रेगिस्तान, कभी पेड़-पौधों की बहार तो कभी शहर-गाँव का दर्शन रोमांचक रहा। इसके अलावा बादल, बादलों की खेती, चाँद-सूरज और टिमटिमाते हुए तारे, कभी जमीन पर रेंगती हुई कारें तो कभी घर-मकान से अंटी हुई धरती और ये नीला आकाश कितना सुन्दर दिखता है।
वहाँ सभी नीग्रो हैं, हमारे अलावा यात्री भी और कर्मचारी भी। नैरोबी से जोहान्सबर्ग, बहुत खूबसूरत दृश्य, रोशनी की चकाचौंध से भरा। 28 अप्रैल को जोहान्सबर्ग-प्रिटोरिया-क्रूगर की यात्रा हुई। माला वर्मा अपने दल के लोगों के बारे में,उनके कार्य और व्यक्तित्व के बारे में बताती हैं। जहाँ-जहाँ जाती हैं, वहाँ की हरियाली,लोगों के रहन-सहन, तौर-तरीके, खान पान आदि की खूब चर्चा करती हैं। वे हर स्थान की, हर दृश्य की तस्वीरें लेती हैं और मौसम की चर्चा करना नहीं भूलती। जोहान्सबर्ग के मंडेला हाऊस में नेल्सन मंडेला की मूर्ति दिखी, भव्य और गरिमापूर्ण। वे बताती हैं, 1910 में इस देश का नाम साऊथ अफ्रीका पड़ा। उन्होंने विस्तार से इसका इतिहास लिखा है। यहाँ महात्मा गाँधी की वह मूर्ति लगी है, जब वे जवान थे। उन्होंने यहाँ रंगभेद के विरोध में लड़ाई लड़ी। विस्तार से जानने के लिए मालाजी श्री गिरिराज किशोर की पुस्तक “गिरमिटिया गाँधी” और स्वयं गाँधी जी की पुस्तक “सत्य का प्रयोग” पढ़ने की सलाह देती हैं।
प्रिटोरिया का मौसम अच्छा था। वहाँ का पार्लियामेण्ट ऊँची पहाड़ी पर है। यह पर्यटन का मुख्य आकर्षण है। माला जी ने विस्तार से दक्षिण अफ्रीका में आने वाले विदेशी व्यापारियों और उनके व्यापार की चर्चा की है। अंग्रेजों का प्रभुत्व होने से ईसाई धर्म अधिक फला-फूला। हिन्दुओं पर बहुत सारे प्रतिबंध थे। 1913 में नियम बनाकर भारतीयों के यहाँ आने पर रोक लगा दिया गया। यह देश गणतंत्र तो था परन्तु वोट देने का अधिकार सबको नहीं था। काले लोगों को बहुत सी सुख-सुविधाओं से वंचित किया गया था। रंगभेद नीति के विरुद्ध नेल्सन मंडेला ने संघर्ष छेड़ा। उन्हें 27 वर्षों के जेल की सजा हुई और 1990 में जेल से मुक्ति मिली। साऊथ अफ्रीका ब्रिक्स का सदस्य है। दक्षिण अफ्रीका, अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यहाँ की मुद्रा रेंड (जार) है। यह दुनिया के खूबसूरत देशों में से एक है। यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य को देखने दुनिया भर से पर्यटक आते हैं।
क्रूगर क्षेत्र में वहाँ का बेहतरीन रिसार्ट है जो जंगल के बीच बना है। 29 अप्रैल को क्रूगर नेशनल पार्क की यात्रा हुई और 30 अप्रैल को क्रूगर-जोहान्सबर्ग-नेस्ना की यात्रा हुई। आर्थिक रुप से दक्षिण अफ्रीका पिछड़ा या भारत की तरह विकासशील देश है। उसके बाद पहली मई को निस्ना-कैगोकेभ-ओदशोर्न-नेस्ना जैसे क्षेत्रों की यात्राओं की शुरुआत हुई। अगले दिन 2 मई को निस्ना-मोसेल बे-केप टाऊन को देखा, समझा गया। 3 मई को केप टाऊन-पेनिनसुला का टूर हुआ। वैसे ही अगले दिन 4 मई को केप टाऊन-रोबेन आईलैंड के दर्शनीय जगहों का परिभ्रमण हुआ। 5 मई को केप टाऊन का अंतिम दिन था। वहाँ का टेबल पहाड़ अद्भुत आकर्षक था। 6 मई को नैरोबी से वापसी की यात्रा शुरु हुई-नैरोबी-मुम्बई-कोलकाता।
माला वर्मा का साहित्य लेखन के साथ-साथ पर्यटन-देशाटन प्रेम अद्भुत और सराहनीय है। अपने संस्मरणों में देखे हुए देश का, वहाँ की सम्पूर्ण दृश्यावली, वहाँ की सड़कें व आबादी का विन्यास, वहाँ की हरियाली, सजावट और लोगों का व्यवहार-विचार प्रस्तुत करती हैं। सारे दृश्यों की तस्वीरें लेती हैं, उन्हें सूर्योदय-सूर्यास्त कुछ अधिक ही आकर्षित करता है। सहयात्रियों के रुप-रंग, व्यवहार, व्यक्तित्व, और आपसी प्रेम का चित्रण किसी रोमानी अंदाज में करती हैं। उनकी भाषा व शैली सहज, सुगम्य और रोचक है। कला, संस्कृति, इतिहास, राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक विवरण संस्मरण को सार्थक और महत्वपूर्ण बना देते हैं। एक बार पुस्तक पढ़ लेने के बाद वह देश जाना-पहचाना सा लगने लगता है और वहाँ जाने के लिए प्रेरित, आकर्षित करता है। मालाजी अपने संस्मरण लेखन में विविध भावनात्मक रंगों में उभरती और दिखाई देती हैं। निश्चित ही प्रेम उनका मूल रस-भाव है चाहे प्राकृतिक दृश्यों के लिए हो, मानव निर्मित सौन्दर्य के लिए हो या अपने प्रियजनों के लिए हो। मैं हृदय पूर्वक माला जी को बधाई देता हूँ और उनके सतत लेखन व विश्व भ्रमण के लिए शुभकामनाएं भी।
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